हम सनातन धर्मी शास्त्रों एवं पूर्व आचार्यों के द्वारा कही गई बातों को ही मानते हैं इसलिए हमें शास्त्रीय विधि के द्वारा ही दीपावली पर लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिए। दिनांक 14 नवंबर दिन शनिवार को दीपावली है
लक्ष्मी पूजन मुहूर्त सायं काल 5:10 से रात 7: 6 बजे तक तथा रात में 11:38 से रात 1:52 तक है।
दास दीपावली के दौरान लक्ष्मी पूजा विधि को विस्तृत रूप से उपलब्ध करा रहा हैं। दीपावली पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिए उपलब्ध कराई गई है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिए सोलह चरण शामिल है जिसे षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
तैयारी
दीपावली पूजन के लिए जरूरी सामग्री
कलावा, रोली, सिंदूर, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली। कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन।
दिवाली पूजा की ऐसे करें तैयारी
पूजन शुरू करने से पहले गणेश लक्ष्मी के विराजने के स्थान पर रंगोली बनाएं। जिस चौकी पर पूजन कर रहे हैं उसके चारों कोने पर एक-एक दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा स्थापित करने वाले स्थान पर कच्चे चावल रखें फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। इस दिन लक्ष्मी, गणेश के साथ कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की पूजा का भी विधान है अगर इनकी मूर्ति हो तो उन्हें भी पूजन स्थल पर विराजमान करें। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा के बिना देवी लक्ष्मी की पूजा अधूरी रहती है। इसलिए भगवान विष्ण के बांयी ओर रखकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
चौकी
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
क
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।दीपावली पूजन आरंभ करें पवित्री मंत्र सेः
“ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगाएं।
ब आचमन करें – ऊं केशवाय ,नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं।
इस मंत्र से आसन शुद्ध करें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
ब, अब चंदन लगाएं। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए मंत्र बोलें चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठ सर्वदा।
द,पवित्रीकरण &मार्जन
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
य.आचमन
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें।
प्राणायाम
पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है
स्वस्तिवाचन
फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है।
स्वस्ति वाचन
सनातन धर्म में पूजा पाठ से जुड़े अनेक प्रकार हैं। मगर कुछ नियम ऐसे हैं जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं। वे सभी लोग पूजा पाठ में विश्वास रखते हैं, रोजाना आरती व पूजा करते हैं उनके लिए यह जानना जरूरी है कि हर पूजन से पहले यह स्वस्ति वाचन करना चाहिए। यह मंगल पाठ सभी देवी-देवताओं को जाग्रत करता है।
स्वस्ति मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दुर्वा या कुशा से जल के छींटे डाले जाते थे व यह माना जाता था कि इससे नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है। स्वस्ति मंत्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है। स्वस्तिवाचन मंत्र जगत के कल्याण के लिए, परिवार के कल्याण के लिए स्वयं के कल्याण के लिए, शुभ वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है। मंत्र बोलना नहीं आने की स्थिति में अपनी भाषा में शुभ प्रार्थना करके पूजा शुरू करना चाहिए।
स्वस्तिवाचन मंत्र,
ऊं शांति सुशान्ति: सर्वारिष्ट शान्ति भवतु। ऊं लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:। ऊं उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम:। ऊं शचीपुरन्दराभ्यां नम:। ऊं मातापितृ चरण कमलभ्यो नम:। ऊं इष्टदेवाताभ्यो नम:। ऊं कुलदेवताभ्यो नम:।ऊं ग्रामदेवताभ्यो नम:। ऊं स्थान देवताभ्यो नम:। ऊं वास्तुदेवताभ्यो नम:। ऊं सर्वे देवेभ्यो नम:। ऊं सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नम:। ऊं सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्यहा गणाधिपतये नम:। ऊं स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु
ऊं शान्तिः शान्तिः शान्तिः
फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
दीपावली पूजन के लिए संकल्प मंत्र
बिना संकल्प के पूजन पूर्ण नहीं होता इसलिए संकल्प करें। पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- संकल्प - आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2077 तमेऽब्दे प्रमादी नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋसतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावश्यायां तिथौ रविवासरे चित्रा नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
1.ध्यान
भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें।
दीपावली पूजन विधि और मंत्र
ॐ || हिर'ण्यवर्णां हरि'णीं सुवर्ण'रजतस्र'जां | चंद्रां हिरण्म'यीं लक्ष्मीं जात'वेदो म आव'ह ||
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। या लक्ष्मी दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः सा नित्यं पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
मन्त्र अर्थ - भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।
2 आवाहन
श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्।सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम्।।
ॐतां म आव'ह जात'वेदो लक्ष्मीमन'पगामिनी''म् |
यस्यां हिर'ण्यं विंदेयं गामश्वं पुरु'षानहम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।महालक्ष्मीं आवाहयामि ।आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
आवाहन मंत्र
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ॥
पुष्पाञ्जलि आसन
आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
3 पुष्पांजलि मंत्र
तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐअश्वपूर्वां र'थमध्यां हस्तिना''द-प्रबोधि'नीम् |
श्रियं' देवीमुप'ह्वये श्रीर्मा देवीर्जु'षताम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।पुष्पाञ्जलिरूपमासनं समर्पयामि
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥
4 स्वागत
पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुये हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।
स्वागत मंत्र
ॐअश्वपूर्वां र'थमध्यां हस्तिना''द-प्रबोधि'नीम् |
श्रियं' देवीमुप'ह्वये श्रीर्मा देवीर्जु'षताम् ||
मन्त्र अर्थ - हे देवि, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।
5 पाद्य
गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोस्तुते।।
ॐकां सो''स्मितां हिर'ण्यप्राकारा'मार्द्रां ज्वलं'तीं तृप्तां तर्पयं'तीम् |
पद्मे स्थितां पद्मव'र्णां तामिहोप'ह्वये श्रियम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।पादयोः पाद्यं समर्पयामि
स्वागत कर निम्न-लिखित मन्त्र से पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
पाद्य मंत्र
मन्त्र अर्थ - सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार॥
6 अर्घ्य
अष्टगंध समायुक्तं स्वर्णपात्र प्रपूरितम्।
अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोस्तुते ।
ॐचंद्रां प्र'भासां यशसा ज्वलं'तीं श्रियं' लोके देवजु'ष्टामुदाराम् |
तां पद्मिनी'मीं शर'णमहं प्रप'द्येऽलक्ष्मीर्मे' नश्यतां त्वां वृ'णे ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।हस्तयोर्घ्यं समर्पयामि
पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
अर्धय मंत्र
मन्त्र अर्धय - हे श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है॥
मन्दाकिन्यासमानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।स्नानार्थं जलं समर्पयामि
अर्घ्य के बाद निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएँ।
जल स्नान मंत्र
8 पञ्चामृतस्नान
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पञ्चामृतस्नान से स्नान कराएँ।
पंचामृत स्नान मंत्र
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्।
पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि
9 गन्धस्नान
अब निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएँ।
मलयाचल सम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।गन्धोदकस्नानं समर्पयामि
गंध स्नान मंत्र
10.शुद्ध स्नान
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
शुद्ध स्नान मंत्र
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।शुद्धस्नानं समर्पयामि
11.वस्त्र
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
वस्त्र मंत्र
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षोमं त्वतिमनोहरम्।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।
ॐउपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणि'ना सह |
प्रादुर्भूतोऽस्मि' राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृ'द्धिं ददादु' मे ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि
12.मधुपर्क
श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।
मधुपर्क मंत्र प्रदेश
कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतम्।
मधुपर्को मयानीतो पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।मधुपर्कं समर्पयामि
13 आभूषण
मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर आभूषण चढ़ाये।
आभूषण मंत्र
रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः।।
ॐक्षुत्पि'पासाम'लां ज्येष्ठाम'लक्षीं ना'शयाम्यहम् |
अभू'तिमस'मृद्धिं च सर्वां निर्णु'द मे गृहात् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।
14.रक्तचन्दन
आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर श्री लक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें।
रक्त चंदन मंत्र
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्।
मयादत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।रक्तचन्दनं समर्पयामि
15. सिन्दुर
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
सिंदूर मंत्र
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूर तिलकप्रिये!
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।सिन्दूरं समर्पयामि
16 कुङ्कुम
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें।
कुमकुम मंत्र
कुंकुंमं कामदं दिव्यं कुंकुंमं कामरूपिणम्।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुंमं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।कुंकुंमं समर्पयामि
17 अबीरगुलाल
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगु लाल चढ़ायें।
अबीर गुलाल मंत्र
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।अबीरगुलालं समर्पयामि
18 सुगन्धितद्रव्य
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें।
सुगंधित द्रव्य मंत्र
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मयादत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि
19 अक्षत
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।
अक्षत मंत्र
अक्षतांश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुंमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।अक्षतानि समर्पयामि
20.गन्ध-समर्पण/चन्दन-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
गंध मंत्र
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐगंधद्वारां दु'राधर्षां नित्यपु'ष्टां करीषिणी''म् |
ईश्वरीग्^म्' सर्व'भूतानां तामिहोप'ह्वये श्रियम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।धूपमाघ्रापयामि ।
मन्त्र अर्थ - हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ॥
21.पुष्प-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
पुष्पा मंत्र
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।
ॐमन'सः काममाकूतिं वाचः सत्यम'शीमहि |
पशूनां रूपमन्य'स्य मयि श्रीः श्र'यतां यशः' ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।पुष्पाणि समर्पयामि
22. ऋतुफल मन्त्र
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णासन्तु मनोरथाः।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।अखण्ड ऋतुफलं समर्पयामि। आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
मन्त्र अर्थ - अर्थात्-हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ। हे देवेश्वरि! मुझ पर आप प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ॥
अङ्ग-पूजन
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र काउच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।
अंग पूजन मंत्र
देवी लक्ष्मी की अंग पूजा
ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि
ॐ चंचलायै नम: जानूं पूजयामि,
ॐ कमलायै नम: कटि पूजयामि,
ॐ कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि,
ॐ जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि,
ॐ विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि,
ॐ कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि,
ॐ कमल पत्राक्ष्यै नम: नेत्रत्रयं पूजयामि,
ॐ श्रियै नम: शिरं: पूजयामि। अष्ट-सिद्धि पूजा ।
अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें
अष्टसिद्धि पूजन मंत्र
ॐ अणिम्ने नम:,
ॐ महिम्ने नम:,
ॐ गरिम्णे नम:,
ॐ लघिम्ने नम:,
ॐ प्राप्त्यै नम:
ॐ प्राकाम्यै नम:,
ॐ ईशितायै नम:
ॐ वशितायै नम:।
अष्ट-लक्ष्मी पूजा
अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें।
अष्ट लक्ष्मी मंत्र
अष्टलक्ष्मी पूजन मंत्र और विधि
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें।
ॐ आद्य लक्ष्म्यै नम:,
ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:,
ॐ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:,
ॐ अमृत लक्ष्म्यै नम:,
ॐ लक्ष्म्यै नम:,
ॐ सत्य लक्ष्म्यै नम:,
ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:,
ॐ योग लक्ष्म्यै नम:
23 धूप-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
धूप समर्पण मंत्र
वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः।
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोsयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐकर्दमे'न प्र'जाभूता मयि संभ'व कर्दम |
श्रियं' वासय' मे कुले मातरं' पद्ममालि'नीम् ||
महालक्ष्म्यै नमः।धूपमाघ्रापयामि ।
मन्त्र अर्थ - अर्थात्-वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ॥
24.दीप-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।
दीप समर्पण मंत्र
कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्।
तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि।।
ॐआपः' सृजंतु' स्निग्दानि चिक्लीत व'स मे गृहे |
नि च' देवीं मातरं श्रियं' वासय' मे कुले ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।दीपं दर्शयामि ।
मन्त्र अर्थ - हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ॥
25 नैवेद्य-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मीदेवि नमोस्तुते।।
ॐआर्द्रां पुष्करि'णीं पुष्टिं सुवर्णाम् हे'ममालिनीम् |
सूर्यां हिरण्म'यीं लक्ष्मीं जात'वेदोम आव'ह ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।नैवैद्यं निवेदयामि मध्ये पानीयं उत्तरापो अशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
मन्त्र अर्थ - शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ - प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो॥
26.आचमन-समर्पण/जल-समर्पण
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्।
आचम्यतां जलमेतत् प्रसीद परमेश्वरि।।
ॐआदित्यव'र्णे तपसोऽधि'जातो वनस्पतिस्तव' वृक्षोऽथ बिल्वः |
तस्य फला'नि तपसानु'दंतु मायांत'रायाश्च' बाह्या अ'लक्ष्मीः ||
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्।
आचम्यतां जलमेतत् प्रसीद परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।आचमनीयं जलं समर्पयामि
मन्त्र अर्थ - नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।
27.ताम्बूल-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
पूंगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलाचूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐआर्द्रां यः करि'णीं यष्टिं पिंगलाम् प'द्ममालिनीम् |
चंद्रां हिरण्म'यीं लक्ष्मीं जात'वेदो मआव'हयामि ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि
मन्त्र अर्थ - पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ॥
28 दक्षिणा
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।
दक्षिणा मंत्र
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐतां म आव'ह जात'वेदो लक्षीमन'पगामिनी''म् |
यस्यां हिर'ण्यं प्रभू'तं गावो' दास्योऽश्वा''न्, विंदेयं पुरु'षानहम् ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।दक्षिणाद्रव्यंं समर्पयामि
मन्त्र अर्थ - असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ॥
29.प्रदक्षिणा
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।
प्रदक्षिणा मंत्र
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।।
मन्त्र अर्थ - पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ॥
30 वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलि
अब वन्दना करे और निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
पुष्पांजलि मंत्र
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात्।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणाय च समर्पयामि।
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यात् महालक्ष्मि नमोस्तुते ।
मन्त्र अर्थ - हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ॥
30 साष्टाङ्ग-प्रणाम
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें।
साष्टांग प्रणाम मंत्र
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत् प्रपन्नानां सा में भूयात् त्वदर्चनात् ।।
मन्त्र अर्थ - हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार॥
32.क्षमा-प्रार्थना
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
क्षमा प्रार्थना मंत्र
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैवं न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
कृतानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयतां ,न मम।
मन्त्र अर्थ - न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है॥
लक्ष्मी जी की आरती व मंत्र पुष्पांजलि
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता।।
अथ मंत्र पुष्पांजली ।।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्|
ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने |
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे
स मे कामान्कामकामाय मह्यम्|
कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु|
कुबेराय वैश्रवणाय | महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी
सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत
विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
नाना सुगंधी पुष्पांणि यथाकालभवानिच
पुष्पांजलिर्मयादत्तो गृहाण परमेश्वरि।।
मंत्र पुष्पांजलिं समर्पयामि।।
ॐ महादेव्यै च' विद्महे' विष्णुपत्नी च' धीमहि | तन्नो' लक्ष्मीः प्रचोदया''त् ||
श्री-र्वर्च'स्व-मायु'ष्य-मारो''ग्यमावी'धात् पव'मानं महीयते'' | धान्यं धनं पशुं बहुपु'त्रलाभं शतसं''वत्सरं दीर्घमायुः' ||
ॐ शांतिः शांतिः' |
साभार
धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास कृपा पात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथ पुरी एवं पीठाधीश्वर श्री नैमिषनाथ भगवान रामानुज कोट नैमिषारण्य
दास ने इन मंत्रों को आचार्यों द्वारा पूर्व में कहे गए तथा शास्त्रों से संग्रहीत किया है।यदि कहीं कोई गलती हो गई हो तो उसे आप सुधार सकते हैं।
जय श्रीमन्नारायण