कभी था हैसियत का पैमाना, अब बेगाना कटहल का पेड़ लगाने का खत्म हो रहा चलन

प्रतापगढ़ (ब्यूरो)। शहर हो या गांव कटहल का पेड़ हर जगह देखने को मिल जाता था। बुजुर्ग इसे धरोहर इस कारण मानते थे कि यह मुसीबत के समय काम आता था। बताते है कि कटहल के पेड़ से अदालत में संज्ञेय अपराध में भी जमानत मिल जाती थी। यही कारण था कि भले ही बाग न हो घर के सामने पड़ी जमीन पर बुजुर्ग कटहल का पेड़ लगाना नहीं भूलते थे। वही अब वन विभाग की नर्सरी में कटहल का पेड़ ढूढ़े नहीं मिलता। समय के साथ ही कटहल के पेड़ का अदालती महत्व ही समाप्त हो गया।


बताते चले कि अंग्रेज शासन काल में कटहल का पेड़ तैयार करने के प्रति लोगों में ज्यादा ही रूझान होता था। वजह उस समय लोग पांच पेड़ के दम पर 302 तक के मामले में जमानत करा लेते थे। जिस केस में जमानत के तौर पर जितनी धनराशि दिखानी होती थी उस हिसाब से पेड़ की कीमत का आकलन कर लोगो को कोर्ट से जमानत मिल जाती थी। मुसीबत के समय जब अपने भी साथ देने से कतराने व डरने लगते है। ऐसे में एक पेड़ दोस्त बनकर काम करे तो उसका महत्व अपने आप बढ़ जाता है। इसीलिए बुजुर्ग कटहल को एक पेड़ ही नहीं बल्कि हरा सोना मानते थे। हालांकि बुजुर्ग अब भी कटहल के पेड़ को महत्व देते है। कटहल के पेड़ से अंग्रेज शासन काल में जमानत मिलने के बारे में बुजुर्गो का कहना है कि कटहल के पेड़ को तैयार करने में अन्य पेड़ो की तुलना में ज्यादा समय लगता है। उस समय कटहल के पेड़ की संख्या भी कम होती थी। ज्यो ज्यो समय गुजरता और लोग जमानत के रूप में प्रयोग किए जाने वाले पेड़ को चोरी से बेचने भी लगे थे। इसी के तहत यह व्यवस्था अंग्रेजो के साथ ही दूर हो गई। बुजुर्गो का कहना है कि कटहल के पेड़ से जमानत देने के पीछे यह भी मनसा थी कि इस पेड़ से हर वर्ष एक निश्चित आमदनी फल से हो जाती थी।